राहुल गांधी लोकसभा में लीडर ऑफ अपोजिशन यानि नेता विपक्ष होंगे. इसे छाया प्रधानमंत्री भी कहते हैं. अब उनकी भूमिका प्रवर्तन निदेशालय से लेकर सीबीआई चीफ चुनने में खास होगी.
राहुल गांधी 18वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष होंगे. (Anchal Times News)
हाइलाइट्स
- 10 सालों बाद लोकसभा में होगा नेता प्रतिपक्ष
- नेता प्रतिपक्ष कई अहम समितियों में होता है
- उसके पास कई खास अधिकार होते हैं
18वीं लोकसभा में कांग्रेस के लिए वो हुआ है, जो पिछली दो लोकसभा में नहीं हो सका. वर्ष 2014 में सत्ता से बेदखल होने के बाद कांग्रेस को लोकसभा में पहली लीडर ऑफ अपोजिशन यानि नेता प्रतिपक्ष का पद मिला है. ये संवैधानिक पद राहुल गांधी संभालेंगे. ये ऐसा पद है जिसे खास रूतबा और पॉवर मिलता है. सरकार की सभी महत्वपूर्ण कमेटियों में उसे जगह मिलती है. तमाम शीर्ष सरकारी एजेंसियों के प्रमुख पदों की नियुक्ति में उसकी भी मंजूरी मायने रखती है.
विपक्ष के एक बड़े वर्ग को उम्मीद थी कि कांग्रेस के 10 साल में पहली बार इस प्रतिष्ठित पद का पात्र होने के बाद गांधी विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभालेंगे. 16वीं और 17वीं लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता नहीं था क्योंकि कांग्रेस के पास एलओपी का दर्जा पाने के लिए जरूरी 56 सीटें नहीं थीं. इस बार कांग्रेस के पास लोकसभा में 99 सीटें हैं. एलओपी का दर्जा और भत्ते कैबिनेट मंत्री के बराबर होते हैं.
छाया प्रधानमंत्री क्यों कहा जाता है
“भारतीय संसद” पर एक पुस्तिका के अनुसार, लोकसभा में विपक्ष के नेता को ” छाया मंत्रिमंडल वाला छाया प्रधानमंत्री ” यानि शैडो प्राइम मिनिस्टर भी कहा गया है. यदि सत्तारूढ़ सरकार इस्तीफा दे देती है या सदन में हार जाती है तो विपक्ष का नेता प्रशासन का कार्यभार संभालेगा.
ब्रिटिश संसद में विपक्ष के नेता को ‘छाया प्रधानमंत्री’ कहा जाता है, ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह मौजूदा सरकार के गिरने पर सरकार संभालने के लिए हमेशा तैयार रहता है. वहां विपक्ष का नेता एक छाया मंत्रिमंडल भी बनाता है. इस प्रकार वेस्टमिंस्टर परंपरा के तहत इस संसदीय पदाधिकारी की भूमिका न केवल सरकार का विरोध और आलोचना करना है, बल्कि मौजूदा सरकार के गिरने की स्थिति में वैकल्पिक सरकार बनाने की जिम्मेदारी भी लेना है.
पुस्तिका में खुलासा किया गया, “चूंकि संसदीय प्रणाली पारस्परिक सहनशीलता पर आधारित है, इसलिए विपक्ष का नेता प्रधानमंत्री को शासन करने देता है और बदले में उसे विरोध करने की अनुमति होती है. सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने में उसकी सक्रिय भूमिका सरकार जितनी ही महत्वपूर्ण है.
शीर्ष जांच एजेंसियों के प्रमुखों के चयन में भी होगा रोल
कई संयुक्त संसदीय पैनलों में होने के अलावा, नेता प्रतिपक्ष कई चयन समितियों का भी हिस्सा होते हैं, जो प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी केंद्रीय एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्ति करती है. साथ ही वह केंद्रीय सतर्कता आयोग और केंद्रीय सूचना आयोग जैसे वैधानिक निकायों के प्रमुखों की नियुक्ति करने वाली समितियों का भी सदस्य होता है.
राहुल गांधी के विपक्ष के नेता का पद संभालने का मतलब यह भी है कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर चुनाव आयुक्त, केंद्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक, केंद्रीय सतर्कता आयोग के अध्यक्ष, मुख्य सूचना आयुक्त और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जैसे प्रमुख पदाधिकारियों का चयन करना होगा. इन सभी पदों का चयन एक पैनल द्वारा किया जाता है जिसमें प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष शामिल रहते हैं.
अब तक राहुल गांधी कभी मोदी के साथ किसी पैनल में शामिल नहीं हुए हैं.साथ ही वह एनएचआरसी और लोकपाल जैसे वैधानिक निकायों के प्रमुखों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार विभिन्न चयन समितियों के सदस्य होने के भी हकदार हैं.
मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन में भी होगी भूमिका
चुनाव आयोग में आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन के लिए जो कमेटी बनती है, उसमें भी नेता प्रतिपक्ष को जगह मिलती है. इस पद को संसद में विपक्ष के नेताओं के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1977 के माध्यम से वैधानिक मान्यता प्राप्त हुई.
राहुल गांधी 2004 से लोकसभा के सदस्य हैं. उन्होंने कुछ समय पहले हुए लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में रायबरेली और केरल में वायनाड से जीत हासिल की. इसके बाद उन्होंने रायबरेली को बरकरार रखा, जो लंबे समय से गांधी परिवार से जुड़ा हुआ निर्वाचन क्षेत्र है, और वायनाड को खाली कर दिया, जहां से कांग्रेस उनकी बहन और वरिष्ठ पार्टी नेता प्रियंका गांधी वाड्रा को मैदान में उतारेगी.